मैं उस डूबता हुआ,
सूरज को देख रही थी,
आकाश की गहराइयों,
को नाप रही थी,
नभ में जो ऐसे रंग बिखरे थे,
मानों ऐसा लगता है,
जैसे उसके चहकने के नखरे थी |
शाम को क्या वह,
हवा की अदाएं थी ,
और बादल की क्या घटाएं थी ,
हार्ट ऐसे पिघला जैसे ,
नदियाँ बहती जा रही थी ,
नाम: हेमा
कक्षा :12
अपना केंद्र, कानपुर
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