Thursday, December 29, 2011

कविता : गीत ........

अकेले चलो तुम ......
न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम
सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी
सदा जो बिना जगाये ही जगा है
अँधेरा उसे देखकर ही भगा है
वंही बीज पनपा  पनपना जिसे था
धुना क्या किसके उगाये उगा है
अगर उअग सको तो उगो सूर्य से तुम
प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी
सही राह को छोड़कर जो मुड़े है
वही देखकर दूसरों को कुढ़े है
बिना पंख तोले जो गगन में उड़े है
न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े है
अगर बन सको तो पखेरू बनो तुम
प्रखरता तुम्हारे कदम चूम लेगी
न जो बर्फ की आँधियों से लड़े है
कभी पगा न उनके शिखर पर पड़े है
जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से है
वही जी चुराकर तरसते खड़े है
अगर जी सको तो जियो झूम कर
अमरता तुम्हारे कदम चूम लेगी ...

सनी कक्षा ५, 
अपना स्कूल, तम्साहा, कानपुर

10 comments:

  1. यह रचना दतिया जिला मध्य प्रदेश के सुप्रिद्ध संगीतकार स्व. श्री महेश मिश्र "मधुकर" द्वारा रचित है इसका शुद्ध स्वरूप निम्न प्रकार है।

    अगर चल सको तो स्वयं ही चलो तुम
    सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी
    बिना जो जगाये स्वयं ही जगा है
    अँधेरा उसे देखकर ही भगा है
    वंही बीज पनपा पनपना जिसे था
    धुना क्या किसके उगाये उगा है
    अगर उअग सको तो उगो सूर्य से तुम
    प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी
    सही राह को छोड़कर जो मुड़े है
    वही देखकर दूसरों को कुढ़े है
    बिना पंख तोले जो गगन में उड़े है
    न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े है
    अगर बन सको तो पखेरू बनो तुम
    प्रखरता तुम्हारे कदम चूम लेगी
    न जो बर्फ की आँधियों से लड़े है
    कभी पगा न उनके शिखर पर पड़े है
    जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से है
    वही जी चुराकर तरसते खड़े है
    अगर जी सको तो जियो झूम कर
    अमरता तुम्हारे कदम चूम लेगी ...
    ( श्री महेश मिश्र “मधुकर)

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  2. बहुत सुंदर गीत।एक बार पढ़ने के बाद बार बार पढ़ने का मन करता है।

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  3. बहुत सुंदर दिल प्रफुल्लित हो उठा

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